दुनिया में लोग कई धर्मो को मानते हे लेकिन उन सभी धर्मो में हिन्दू धर्म सबसे प्राचीन धर्म माना जाता हे। भारत में यह हजारो सालो से कायम हे जहा एक से दूसरे छोड़ तक अनगिनत मंदिर दिखने में आते हे लेकिन दक्षिण भारत के पहाड़ो की चोटी पर शान से खड़ा एक मंदिर उन हिन्दू धार्मिक स्थलों मे से एक हे जहा दुनिया भर से सब से ज्यादा तीर्थयात्री आते हे।
आंध्रप्रदेश राज्य में मौजूद तिरुपति पहली नजर में मॉडल इंडिया के किसी भी अर्बन सिटी की तरह चहल पहल से भरा दीखता हे लेकिन यह जाना जाता हे सदियों पुराने आध्यात्मिक स्वर्ग के द्वार के तोर पर। यहाँ 8000 sq km में फैले 50 करोड़ साल पुराने पहाड़ से गुजरकर सफर पोहचता हे टेम्पल टाउन तिरुमला।
Tirumala temple town |
दुनिया भर में बसे एक अरब से ज्यादा हिन्दू औ में से ज्यादातर के लिए यह टेम्पल टाउन मायने रखता हे. समुंद्रतल से करीब 2500 फ़ीट उचाई पर मौजूद तिरुमला धरती के उन हिन्दू तीर्थो में से एक हे जहा सबसे ज्यादा लोग आते हे। यहाँ रोजाना औसतन 60 से 70 हज़ार लोग आते हे खास मोको पर तो लोगो की भीड़ 1 लाख से भी ज्यादा हो जाती हे.
सबकी एक ही इच्छा होती हे की उस मंदिर में जाना जो समर्पित हे भगवान श्री वेंकटश्वर स्वामी को.तिरुमला मंदिर सृष्टि के सर्जनहार भगवान विष्णु को समर्पित हे। भगवान विष्णु श्री वेंकटेश्वर स्वामी के रूप में अवतरित हुए और सबके कल्याण के लिए तिरुमला में ही बस गए।
तिरुमला तिरुपति बालाजी मदिर का इतिहास (History Of Tirumla Tirupati Balaji)
तिरुमला मंदिर द्रविनियम आर्किटेक्चर कि उस शैली की एक शानदार मिसाइल हे जो सात वि सदी की हे। इस आर्किटेक्चर में खास होते हे विशाल पिरमिड जैसे स्ट्रक्चर जिन्हे कहते हे गोपुरम और पिलोर्ड़ हॉल जिन्हे कहते हे मंडपम। गोपुरम और मंडपम में खास तरह की तरासी हुई मुर्तिया दिखती हे जो अलग अलग वंश की कहानिया कहती हे. 9 वि सदी में यह पल्लव वंश से लेकर 11 वि सदी में चोल वंश था 14 वि और 15 वि सदी में यह टेम्पल टाउन विजयनगर वंश के प्रभाव में था .18 वि से लेकर 19 वि सदी तक ब्रिटिश एम्पायर ने यह से टैक्स वसूला था आख़िरकार 1933 में एक एक्ट पास हुआ जिसमे मंदिर और उसे जुडी गतिविधियों की देखरेख के लिए एक ओटोनॉमस बॉडी बनाई गई जिसका नाम दिया गया तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (T.T.D) आज भी T.T.D ही श्रद्धालु को तिरुमला पोहचने के बाद से उन की इस तीर्थयात्रा की सारि देखरेख करता हे।
तिरुमला मुख्य मदिर तक पोहचने का सफर (Way To Tirumala Main Temple)
तिरुमला आने वाले तक़रीबन हर श्रद्धालु का एक ही मकसत होता हे की यह आकर श्री वेकेंटश्वर स्वामी के दर्शन करना यह लोग अपनी पूरी श्रद्धा से मन्नत मांगते हे. लेकिन दर्शन का रास्ता उतना आसान नहीं हे सफर लम्बा हे जो सरु होता हे पहाड़ की तलहटी में तिरुपति से तलहटी से ऊपर मंदिर पोहचने के दो तरीके हे सेसाचलम की घुमावदार सड़क से करीब एक घंटे की ड्राइव से भी मंदिर पोहचा जा सकता हे लेकिन बहोत से लोग ज्यादा मुश्किल तरीका अपना कर जाते हे 16 वि सदी के राजा की तरह यानि पैदल जाते हे। पैदल रास्तो में से भी दो रस्ते हे ज्यादा चढ़ाई वाला मुश्किल रास्ता श्रद्धालु कम चढ़ाई वाला लम्बा रास्ता भी चुन सकता हे अदिकतर श्रद्धालु इसी रस्ते से जाते हे. रास्ते में श्रद्धालु को अलग अलग तरीके से चढ़ाई करते हुए देखा जा सकता हे जैसे हर सीडी पे सिंदूर का टिका लगाते हुए जाना कुछ श्रद्धालु तो हाथो और घुटनो के बल पर सिडिया चढ़ कर आते हे और कुछ ऐसे भी हे जो चढ़ाई का पूरा आनंद लेते हे .
अलिपिलीवाले रास्ते में गलिकोपुरम एक खास पड़ाव हे यह दर्शन के लिए रजिस्ट्रेशन होता हे. आज कम्पूटराइज़्ड टोकन सिस्टम के चलते यह प्रोसेस आसान हो गया हे और रास्ते में भी तमाम सहूलियतों में सुधार हुआ हे इस का श्रेय जाता हे तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (T.T.D. के अड्मिनिस्ट्रेस्शन को श्रद्धालु पैदल आये हो या गाड़ियों से सभी आखिरकार तिरुमला पहोचते हे. यानि वो टाउन जिसके सेंटर में हे श्री वेंकटश्वर स्वामी। यह आकर कुछ श्रद्धालु तो सीधे कल्याण कट्टा की तरफ बढ़ जाते हे यह एक खास रस्म को अंजाम दिया जाता हे जो पुरे तिरुमला टाउन में सबसे खास नजारो में से एक बन जाता हे. जहा देखो वही मुंडन किये हुए सर दिखाय देते हे कई श्रद्धालु दर्शन से पहले मुंडन करना जरुरी मानते हे यह मुंडन करने की रश्म भगवान् के पास जाने से पहले अपना अहम को मिटा देने का प्रतिक मानी जाती हे.
tirupati jane ka rasta |
अलिपिलीवाले रास्ते में गलिकोपुरम एक खास पड़ाव हे यह दर्शन के लिए रजिस्ट्रेशन होता हे. आज कम्पूटराइज़्ड टोकन सिस्टम के चलते यह प्रोसेस आसान हो गया हे और रास्ते में भी तमाम सहूलियतों में सुधार हुआ हे इस का श्रेय जाता हे तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (T.T.D. के अड्मिनिस्ट्रेस्शन को श्रद्धालु पैदल आये हो या गाड़ियों से सभी आखिरकार तिरुमला पहोचते हे. यानि वो टाउन जिसके सेंटर में हे श्री वेंकटश्वर स्वामी। यह आकर कुछ श्रद्धालु तो सीधे कल्याण कट्टा की तरफ बढ़ जाते हे यह एक खास रस्म को अंजाम दिया जाता हे जो पुरे तिरुमला टाउन में सबसे खास नजारो में से एक बन जाता हे. जहा देखो वही मुंडन किये हुए सर दिखाय देते हे कई श्रद्धालु दर्शन से पहले मुंडन करना जरुरी मानते हे यह मुंडन करने की रश्म भगवान् के पास जाने से पहले अपना अहम को मिटा देने का प्रतिक मानी जाती हे.
यहां दर्शन के लिए बाद में घंटो तक लाइन में रहना पड़ता हे इसी वजह से बीते सालो माँ दर्शन की लाइनों में रेस्टिंग गेलेरी का इंतजाम किया गया हे। साल दर साल बढ़ती भीड़ को देखते हुए TTD ओर्थोरिटी ने एकबार फिर इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर एक आसान तरीका निकाला हे अब श्रद्धालु दर्शन अपॉइमेंट पहले ही ऑनलाइन बुक कर सकते हे. कोई किसी भी रस्ते से आये आखिर में सभी एक ही द्वार पर पहोचते हे श्री वेंकेटेश्वर स्वामी के मंदिर के द्वार.
मुख्य प्रतिमा के पास कई और प्रतिमा हे हर एक प्रतिमा की अलग पहचान, तय मकसत,और अपनी एक वजह हे। चांदी की भोगहश्रीनिवास की प्रतिमा वो स्वरूप हे जिसे रोजाना की ज्यादातर रश्मो में पूजा जाता हे। यह कोलुवुश्रीनिवास की प्रतिमा हे जो मंदिर के विधिविधानो में प्रतिक के तोर पर शामिल होती हे। उग्रश्रीनिवास की प्रतिमा भगवान के क्रोधित स्वरूप को दर्शाती हे। और यह श्री मलयप्पास्वामी की प्रतिमा की दोनों और देविया हे एक हे भूदेवी और दूसरी हे श्रीदेवी यही वो सभी प्रतिमा हे जो रोज होने वाली पूजा के लिए गर्भगृह से बहार जाती हे. प्रतिमा चाहे गर्भगृह के अंदर हो या बहार उन्हें कीमती नगीने से बने गहने पहनाये जाते हे और शानदार परंपरागत पोशाक भी पहनाया जाता हे।
वो क्या हे जो इस लड्डु को खास बनाता हे ? इसका जवाब सायद इन्हे बनाने वाले मॉडर्न टेक्नोलॉजी और सदियों पुराने मुँह में पानी लाने वाले परंपरागत के मेल में छुपा हे. लड्डू की इस मंदिर की फ़ूड स्टोरी में एक खास जगह हे। हर लड्डू हाथ से बनाया जाता हे चने के आटे,चीनी ,और घी से इसमें इलायची जैसे स्पाइसिस और काजू किसमिस जैसे ड्राईफूड डाले जाते हे।यहां तिरुमला में रोजाना करीब 3 लाख लाडू त्यार होते हे। यह लड्डू भी T.T.D के टेस्टिंग लैब से टेस्ट होकर आते हे।
उत्सव के दौरान यहाँ जबरदस्त धूमधाम रहती हे। इस उत्सव के दौरान रोज सुबह ओर शाम को मुख्य मंदिर से भगवान श्री मलयप्पास्वामी की सवारी निकलती हे.उत्सव के सरु होते ही माहौल जोश से भर जाता हे। इस उत्सव के दौरान करीब 35 टन से भी ज्यादा फूलो का उपयोग होता हे यह फूलो दूसरे राज्यों और दूसरे देशो से भी आते हे। इस उत्सव में गरुड़ के आकर का वो सुनहरा रथ के दर्शन होते हे जिस रथ में सवार होते हे श्री मलयप्पास्वामी। भगवान को तमाम तरह के विधिविधान से पूजा जाता हे जिन्हे लाखो की भीड़ निहारती हे।
तिरुमला मंदिर में एक आम दिन भीड़ की तादाब 60 से 80 हजार तक पहोच जाती हे सभी का एक ह मकसत होता हे मंदिर में बिराजे भगवान श्री वेकेंटश्वर स्वामी के दर्शन। श्रद्धालु खास तरह के एहसास पाने की उम्मीद में तिरुमला आते हे। दिव्य दर्शन से लेकर मशहूर तिरुपति लड्डू चखने तक का सफर वो पूरी भक्ति के साथ करते हे पहाड़ पर बसे इस टेम्पल टाउन पर मिलन होता हे भौतिक और पारलौकिक का और लगातार बहती हे धारा तिरुमला के भगवान श्री वेकेंटश्वर स्वामी की भक्ति की।
तिरुमला तिरुपति बालाजी मुख्य मंदिर (Inside Of Tirumala Tirupati Balaji)
मुख्य मंदिर 22 एकर में फैला हे इसकी लम्बाई हे 415 फ़ीट और चौड़ाई 263 फ़ीट श्रद्धालु महाद्वाराम से अंदर आते हे जो हे 50 फ़ीट उच्चा बाहरी गोपुरम अंदर जाते हुए हे आयना महल और ध्वजस्तंभ हे सिंगल पॉइंट एंट्री से श्रद्धालु की भारी भीड़ मुख्य द्वार से दाखल होती हे। यह हर घंटे 4000 तीर्थयात्री गुजरते हे। अंदर जाकर श्रद्धालु को कुछ पल के लिए श्री वेकेंटश्वर स्वामी के दर्शन होते हे। यहां पर ही हे भगवान की 8 फ़ीट उची प्रतिमा। इस बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं हे की यहां यह प्रतिमा किसने बनाई या किसने स्थापित की लेकिन बहोत का मानना हे की ऐ यह स्वयं प्रगट हुए।tirupatibalaji |
मुख्य प्रतिमा के पास कई और प्रतिमा हे हर एक प्रतिमा की अलग पहचान, तय मकसत,और अपनी एक वजह हे। चांदी की भोगहश्रीनिवास की प्रतिमा वो स्वरूप हे जिसे रोजाना की ज्यादातर रश्मो में पूजा जाता हे। यह कोलुवुश्रीनिवास की प्रतिमा हे जो मंदिर के विधिविधानो में प्रतिक के तोर पर शामिल होती हे। उग्रश्रीनिवास की प्रतिमा भगवान के क्रोधित स्वरूप को दर्शाती हे। और यह श्री मलयप्पास्वामी की प्रतिमा की दोनों और देविया हे एक हे भूदेवी और दूसरी हे श्रीदेवी यही वो सभी प्रतिमा हे जो रोज होने वाली पूजा के लिए गर्भगृह से बहार जाती हे. प्रतिमा चाहे गर्भगृह के अंदर हो या बहार उन्हें कीमती नगीने से बने गहने पहनाये जाते हे और शानदार परंपरागत पोशाक भी पहनाया जाता हे।
प्रसादम(prsadam)
मंदिर के सबसे पॉप्युलर ट्रेडिशन में से एक हे प्रसादम जिसे श्रद्धालु मुख्यमन्दिर से निकलने के बाद लेते हे. असलमे इंडियन मिठाइयों में इस ने सेलिब्रिटी स्टेटस हासिल कर लिया हे नाम हे तिरुपति लड्डु। यह लड्डू इतने पसंद किये जाते हे की हाल के सालो में इसे पेटंट कराया गया हे। तिरुपति लड्डु G.I यानि जिओग्रापीकल इंडिकेशन स्टेटस दिया गया हे जिसका मतलब हे मंदिर की यह प्रिपरेशन और क्वॉलिटी यूनिक हे।वो क्या हे जो इस लड्डु को खास बनाता हे ? इसका जवाब सायद इन्हे बनाने वाले मॉडर्न टेक्नोलॉजी और सदियों पुराने मुँह में पानी लाने वाले परंपरागत के मेल में छुपा हे. लड्डू की इस मंदिर की फ़ूड स्टोरी में एक खास जगह हे। हर लड्डू हाथ से बनाया जाता हे चने के आटे,चीनी ,और घी से इसमें इलायची जैसे स्पाइसिस और काजू किसमिस जैसे ड्राईफूड डाले जाते हे।यहां तिरुमला में रोजाना करीब 3 लाख लाडू त्यार होते हे। यह लड्डू भी T.T.D के टेस्टिंग लैब से टेस्ट होकर आते हे।
ब्रम्होत्सव (Bramhotsav)
ब्रम्होत्तसव 9 दिन का होता हे और उत्सव से पहले ही यहाँ तिरुमला टाउन रंगबेरंगी जग्महट और गीतसंगीत में गूंज उठता हे। इस उत्सव के दौरान ये दिनिया में सबसे ज्यादा हिन्दू तीर्थयात्री आते हे। पहाड़ी के बीचमे बसा तिरुमला टेम्पल टाउन में 1 लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु का जमघट लगा होता हे। ब्रम्होत्सव श्री वेकेंटश्वर स्वामी के तिरुमला में पौराणिक आगमन की ख़ुशी में मनाया जाता हे।उत्सव के दौरान यहाँ जबरदस्त धूमधाम रहती हे। इस उत्सव के दौरान रोज सुबह ओर शाम को मुख्य मंदिर से भगवान श्री मलयप्पास्वामी की सवारी निकलती हे.उत्सव के सरु होते ही माहौल जोश से भर जाता हे। इस उत्सव के दौरान करीब 35 टन से भी ज्यादा फूलो का उपयोग होता हे यह फूलो दूसरे राज्यों और दूसरे देशो से भी आते हे। इस उत्सव में गरुड़ के आकर का वो सुनहरा रथ के दर्शन होते हे जिस रथ में सवार होते हे श्री मलयप्पास्वामी। भगवान को तमाम तरह के विधिविधान से पूजा जाता हे जिन्हे लाखो की भीड़ निहारती हे।
तिरुमला मंदिर में एक आम दिन भीड़ की तादाब 60 से 80 हजार तक पहोच जाती हे सभी का एक ह मकसत होता हे मंदिर में बिराजे भगवान श्री वेकेंटश्वर स्वामी के दर्शन। श्रद्धालु खास तरह के एहसास पाने की उम्मीद में तिरुमला आते हे। दिव्य दर्शन से लेकर मशहूर तिरुपति लड्डू चखने तक का सफर वो पूरी भक्ति के साथ करते हे पहाड़ पर बसे इस टेम्पल टाउन पर मिलन होता हे भौतिक और पारलौकिक का और लगातार बहती हे धारा तिरुमला के भगवान श्री वेकेंटश्वर स्वामी की भक्ति की।
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