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Wednesday, April 10, 2019

lijjat papad story business empower

lijjat papad story 

1959 में घर पर सात औरते एकठा हुई उनका एक ही सपना था पापड़ बनाये और अपने आप से गरीबी से आजाद करे। 80 रुपए की लोन से  यह काम आज पुरे देश में फेल गया हे साथ में यह दुनिया भर के इंडियन किचन की पहचान बन गया हे। 7औरते से सरु हुआ यह काम आज 85000 से भी ज्यादा औरते संभाल रही हे वुमन एम्पायर की एक सच्ची कहानी जो आज सबको पेरणा  देती हे। 
lijjat papad

lijjat Papad Case Study 

इंडिया में अगर परम्परा की बात करे तो औरतो ने होममेकर का किरदार निभाया हे जिसका बुनियादी महत्व हे। घर से दूर औरतो के हाथ से बनाया हुआ खाना ही वो एक दोर होता हे जो हमें अपने घर की तरफ  खींच लाता हे। उनका प्यार, उनकी दुआए और उनकी देखभाल हमेशा उनके परोसे हुए खाने में झलकती हे। खाने में एक चीज़ जो घरो में सबके थालियों में देखने को आती हे वो हे पापड़। और इंडिया में  दुनिया में सबसे पहला नाम सामने आता हे वो हे लिज्जत पापड़। इसकी बुनियादी शरुआत करने वाली हे जशवंतीबेन। उसने सोचा भी नहीं होगा की 80 रुपए की लोन से सरु की हुई यह शरुआत आगे जाकर  1.6 अरब की इंडस्ट्रीज बन जाएगी। इसकी कामयाबी छुपी हे इसकी  सादगी में। जशवंतीबेन सहित 21 मेंबर की सेंट्रल टीम के पास इसका डिसीजन मेकिंग पावर हे।  यह देश की सभी हिस्सों में नई ब्रान्चिस खोलते हे यह सभी ब्राचीस रो मटीरियल उपलब्ध करती हे और हज़ारो सिस्टर इस रौ मटीरियल लेकर अपने  पापड़ पेलते हे और वापस ब्रान्चिस में जमा कराती हे जहा  से यह डिस्ट्रीब्यूट होते हे।यही सब मिलकर बनाते हे वूमेन एमपावर का सबसे बड़ा पेरणा स्त्रोत लिज्जत पापड़। पापड़ की कामयाबी की खास वजह में से एक हे उसका एक जैसा स्वाद। 50 से ज्यादा सालो तक उसके स्वाद में कोई बदलाव नहीं आया हे लिज्जत पापड़ में इस्तमाल की जाने वाली हींग खास तोर पर अफ़ग़ानिस्तान से मगाए जाती हे। एक साल में लिजजत 1.6 अरब से ज्यादा पापड़ त्यार करता हे लिज्जत अपने पापड़ यु.के ,यूरोप, यूनाइटेड स्टेट ,साउथ ईस्ट एशिया ,और आफ्रिका के कुछ हिस्सों में एक्सपोर्ट करता हे। इतनी सारि मांगे पूरी करने के लिए देश में हर ब्रांच एक दुशरे की मदद करती हे। पापड़ बनाने वाली औरतो का क्वॉलिटी जांच के लिए सीनियर मेंबर उसके घर जाकर जांच होती हे। लिज्जत वेन  रोजाना सुबह सिस्टर मेंबर के उसके घर के पास से  लेकर ब्रांच तक लेकर आती हे और सिस्टर मेंबर बनाये हुए पापड़ जमा कर के अगले दिन के लिए रौ मटीरियल ले जाती हे लिज्जत कई  ब्रान्चिस में अपने मेंबर के लिए प्राइमरी एजुकेशन की शिक्षा देता हे। कलेक्ट किये पापड़ को प्राइस ,मैन्युफैक्टर डेट ,और फ्लेवर वाले  पेकिंग  में पैक किया जाता हे.

Achievement Of lijjat Papad Turn Over

लिज्जत ने अपने कंस्यूमर को सबसे बेहतरीन तरीके से सादगी से बनाया हुआ बेस्ट कुलिटी का पापड़ बनाकर  दिया हे।  हाला की इस से भी बड़ा अचीवमेंट हे पुरे भारत में करीब 45000 से भी ज्यादा औरतो को इज़्ज़त वाला काम देना . बढ़ते बिज़नेस के पीछे हे संस्था की प्रोग्रेसिव सोच अभी आज के दिन पर तो लिज्जत में रोटी भी त्यार होने लगी हे। यह सबके पीछे एक ही मकसत हे ज्यादा से ज्यादा वुमेन को एम्पावर करना। 80 रूपसे से सरु हुए लिज्जत पापड़ का आज महीने का एक्सपोर्ट टारगेट 7 करोड़ रुपए और वार्षिक टारगेट 70 करोड़ रुपए। हे बिना मॉर्डन मशीन के क्वालिटी को बनाये रखने के इरादे के साथ लिज्जत ने त्यार किया एक सादगी भरा पापड़ जो बना भारत में औरतो को एम्पावर करने का एक जरिया। 


Thursday, April 4, 2019

Amritsar goldan temple on vaishakhi अमृतसर गोल्डन टेम्पल (golden temple )


अमृतसर गोल्डन टेम्पल (golden temple )

पंजाब यहां की 75 प्रतिसत  आबादी सीधे खेती पर निर्भर करती हे। यही वो पवित्र धरती हे जहा  बोये जाने वाले बीज भगवान हे,और काटेजाने वाली फसल धर्म। सिख धर्म जो दुनिया का 5 माँ सबसे बड़ा धर्म हे उस में वैशाखी के दिन  को नया साल मानते हे। उस दिन किशान  की फसल अच्छी होने के तोर पर भारत पे मनाया जाता हे। 
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amrutsar goldan temple

वैशाखी के दिन पंजाब में सभी श्रद्धालु अमृतसर गोल्डन टेम्पल जायेगे।  यह अमृतसर  पंजाब में शिखो की आध्यात्मिक राजधानी हे। सभी श्रद्धालु वैशाखी के दिन श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा पोहचते हे,जो शिख द्धर्म का सबसे पवित्र और ऐतिहासिक स्थान।  उतर ,दक्षिण ,पूर्व और पश्चिम के खुले हुए इसके द्वार यह बात बताते हे की जीवन के हर पहलु से जुड़े हुए लोगो का इस गुरुद्वारा में स्वागत हे। यह स्थान शिख धर्म का केंद्रीय स्थान हे।  

इतिहास 

इस गुरुद्वारे का इतिहास 16 वि सदी से शरू होता हे जब शिख धर्म के चौथे आध्यात्मिक गुरु गुरुरामदास जी ने अमृतसरोवर या पवित्र सरोवर की खुदाई का काम सरु किया था जिसके बीचोबीच हे हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा मुख्य दरबार की पहली इट रखी  थी हजरत मियामीर  ने जो उस दौर के मशहूर सूफी संत थे.
 5 वे गुरु अरजनदेव
shree arjandev maharaj

 कंस्ट्रक्शन का काम 5 वे गुरु अरजनदेव की  निगरानी में हुआ था  और इस शहर का नाम इसी अमृत सरोवर  के नाम पर रखा गया अमृतसर। सोने की परख के चमकता यह पवित्र दरबार ही वो जगह हे जहा शिखो के आदि ग्रन्थ यानि गुरुग्रंथ साहिब को 16 अगस्त 1604 को गद्दी पर स्थापित किया गया था। 

गुरु रामदास लंगर 

हरमंदिर साहिब गुरुद्वार के उत्तर द्वार के पास  लाल इटो से दिखने वाली इमारत  हे जो हे गुरु रामदास लंगर दुनिया की सबसे बड़ी फ्री कम्युनिटी किचन।  यह लंगर करीब रोज एक लाख लोगो  को खाना खिलाता हे।  और एक साल में करीब 3.5 करोड़ लोगो को खाना खिलाती हे।  लंगर की प्रथा शाहिब श्री गुरुनानक महाराज से सरु हुए हे। 
वैशाखी के दिनों में पुरे  पंजाब में मस्ती छाने लगती हे। उन दिनों में यह तक़रीबन 2 लाख से भी अधिक श्रद्धालु आते हे उसके खाने के लिए यह एक्स्ट्रा किचन का इंतजाम किया जाता हे। यह परोसने जाना वाला खाना सादा होता हे। यह की दाल बहुत ही प्रख्यात हे। श्री हरमंदिर शाहिब के दरबार में हर रोज 1800 से 2000 किलो तक दाल इस्तमाल होती हे। यह  दाल लकड़ी की आग से बनाई जाती हे जो दाल को अलग ही बेहतर स्वाद देती हे।
गुरु रामदास लंगर-gururamdas langar-mega-kichan-goldan-temple
Guru Ramdas Langar

 यह श्रद्धा का पवित्र स्थान हे इसलिए खाना बनने के बाद सबसे पहले गुरु को भोग लगाया जाता हे. उसके बाद लंगर में परोसा जाता हे। यह रोजाना बड़ी मात्रा में चाय भी बनाई जाती हे। यहां हर श्रद्धालु को कड़ा प्रसाद दिया जाता हे यह वो प्रसाद हे जो हर गुरुद्वारेमे दिया जाता हे. प्रसाद का त्यौहार वैशाखी से गहरा नाता दीखता हे। प्रसाद के लिए 750 किलो घी और 850 किलो आटा  हे। यहां हजारो सेवादार रोजाना करीब  2 लाख रोटियां बेलते हे। 24 घंटे चल ने वाली इस किचन में एनर्जी की कोई कमी नहीं हे  काम करता हे और उत्साह से प्रसाद लेता हे। यहाँ सब लोग पंगत में निचे बैठते हे यहां कोई आमिर नहीं कोई गरीब नहीं उपरवाले के लिए सब बराबर हे। यहाँ रोजाना 5000 किलो सब्जी काटी जाती हे वैशाखी के दिन 10000 किलो हो जाती हे। यह पुरे भक्ति भाव से खाना परोसा जाता हे और श्रद्धालु यहां आ कर सुकून सा महसूस करते हे। 
यहां अमृतसर गोल्डन टेम्पल में लाखो की तादाब में भक्त आते हे यह गहरा आध्यात्मिक नाता ही तो हे जो हजारो शिखो को यह खींच लाता हे।    
  

Wednesday, April 3, 2019

Adolf hitlar biography rise to power &world war एडोल्फ हिटलर की बायोग्राफी


एडोल्फ हिटलर की बायोग्राफी (Adolf hitlar biography rise to power &world war)


1924 में अडोल्फ हिटलर ने नफरत से भरी एक किताब Mein kampf यानि मेरा संघर्ष लिखी।उसमे उसने अपनी पूरी राजनितिक जीवन गाथा का उल्लेख किया हे। जिसका एक पहलु में आपके सामने रख रहा हु।  
Aedolf hitlar biography-world war-mein kampf-एडोल्फ हिटलर की बायोग्राफी
Adelof Hitlar


अडोल्फ हिटलर जन्म हुआ 20 April 1889 को  आत्महत्या की 30 April 1945 को यह ऑस्ट्रियन जो अचानक कही से आया और जर्मनी पे कब्ज़ा करने में कामयाब कैसे रहा ?उसने नफरत और हिंसा के बीज कैसे बोए ?और हिटलर ने दुनिया को सर्वनाश की तरफ कैसे धकेला ? वो हिटलर फिनोमिना मुंकिन कैसे हुआ ? हिटलर अपनी किताब में लिखता हे पहला विश्वयुद्ध मेरे जीवन का अब तक का वो पहलु हे जिसे में कभी नहीं भुला पाउँगा।  पहले विश्वयुद्ध के दौरान तमाम खूनखराबे देख कर बाकि सैनिको की तरह हिटलर को भी एहसास होता हे की इन्सान  जिंदगी कितनी सस्ती हो सकती हे।  हिटलर धीरे धीरे एक कट्टर राष्ट्रवादी बन जाता हे। 

हिटलर की जीवन गाथा (The Mein Kampf)


   Anti cimetism यानि यहुदियो से नफरत सदियों पुराणी चीज़ हे और इसकी कोई सिमा नहीं हे पुरे इतिहास में अपनी इस नियति से परेशान यहुदियो को चाहे वो गरीब हो या अमीर समय समय पर मुसीबत की घडियो में यहुदियो को बलि का बकरा बनाया गया था।  
20 मि सदी की शरुआत में यहूदियों रशिया में सामूहिक हत्याओं और नरसंहार के शिकार बने। उनमे से बहोत  से जो इस हत्याचार से बचकर   जर्मनी में बस गए। बड़ा सवाल ये हे क्या खुद हिटलर के खून में यहूदी का खून था ?हिटलर के ग्रांडफाधर की पहचान अज्ञांत हे।  
small hitlar-hitlar biography-एडोल्फ हिटलर की बायोग्राफी
Aedolf Hitlar
20 April 1989 एडोल्फ हिटलर का जन्म एक कैथोलिक परिवार में ऑस्ट्रेलिया में होता हे  उसके पिता एक कस्टम अफसर हे जिसने अपनी उम्र से कई कम उम्र वाली लड़की से सादी की थी।  हिटलर के बचपन के सरुआती सालो में परिवार को उनके पिता की सिमा पर बार बार तबादलों की वजह से नई जगह पर रहने जाना पड़ता था।  हिटलर की माँ उसे  बड़े लाड प्यार से पालती हे।  हिटलर को अपने पिता से कोई शिकायत नहीं थी जो नियमो के पक्के थे और शराब पिते थे। 
 हिटलर की माँ जिसकी  मौत केन्सर की वजह से  47साल  में ही हो गयी  वो अकेली ऐसी थी जिसने हिटलर ने सच में प्यार किया था।  हिटलर अपनी आखरी घडियो में भी अपने बंकर में माँ  तस्वीर साथ रखी थी।  हिटलर के पिता हिटलर को एक सरकारी अधिकारी बनाना चाहते थे। हिटलर स्कूल में ज्यादा देर तक नहीं टिक शका  अपने घमंड को वो एजुकेशन सिस्टम से ऊपर समझता था। 19 साल की उम्र में अपनी माँ के मौत के बाद वो जर्मनी के वियेना चला जाता हे। बचपन में उसे राजनीती में जाने का कोई इरादा नहीं था।  वो बड़ा हो के पुरुषो  के बने एक बोडिंग हाउस में रहता हे और टूरिस्ट के लिए पोस्टकार्ड कॉपी करके गुजारा  करता था। जब 1914 में हिटलर  25 साल  का हे  तब युद्ध की घोषणा इस नाकाम हिटलर की जीवनगाथा बदल देगी।

हिटलर का राजनितिक कदम 

पहले वो मिलेट्री सर्विस से बचने के लिए ऑस्ट्रेलिया से भागकर जर्मनी आया था जहा युद्ध की लहर पुरे यूरोप को खूनखराबे की तरफ ले जाती हे।  हिटलर भी युद्ध में सिपाही की तरह लड़ा और युद्ध ने उसे बदल डाला। ३० साल की उम्र में हिटलर  सेना में ही रहना चाहता था लेकिन वो अव्वल रहना चाहता था। हिटलर  बहोत जोश से काम  करता हे तभी उसका मकसत बिलकुल साफ था सर पर छत और दो  रोटी और इसके लिए कुछ भी करने के लिए त्यार था।  वो एक जासूस बन जाता हे.
एडोल्फ हिटलर की बायोग्राफी-aedolf hitlar biography-world war
aedolf hitlar 

 उनके ऊपरी अधिकारी हिटलर के जोश से काम करने के तरीके को नोटिस करते हे इसके बाद हिटलर को एक मिशन दिया जाता हे  जर्मन सैनिको में जोश और उत्साह भरना हिटलर का कमांडिग ऑफिसर नोट करता हे की हिटलर बोलने में भोत माहिर हे उसकी कट्टरपंथ और सोच सुनने वालो को जकड लेती हे और सभी उसकी तरह सोचने लगते हे सरु  से ही हिटलर सुनने वालो में जोश भरना और  उन्हें वो सुनाना जानता  था  जो वो सुनना चाहते हे।उसकी आखरी पुकार जो देश रेशल कंटामिनाशन से दूर रहेगा वही देश दुनिया पे राज करेगा।  उस वक्त जितने वाले देश यानि फ़्रांस ,इंग्लैंड।, और यूनाइटेड स्टेट जर्मनी पर शांति की कड़ी शर्ते लागु करते हे इसके चलते सभी देशो में से जर्मनी को सबसे ज्यादा जुरमाना देना होगा जिस से जर्मनी की अर्थव्यवथा पर भरी असर पड़ा जो आगे चल क्र उसकी नाराजगी का कारण बना जर्मनी से  उसकी 13  प्रतिशत जमीन  और आबादी के 10े वे हिस्से को अलग किया जाता हे  यही मसला आगे चल कर विश्वयुद्ध का  कारन बना जर्मनी के लोग अपनी आखो से अपनी सबमरीन ,अपने एयरफोर्स  तबाह होते देखते हे तब जर्मनी की सेना  सिर्फ 1लाख सैनिक ही रह जाते हे तभी हिटलर को उसकी मर्जी के खिलाफ सेना की नौकरी से निकला जाता हे। हिटलर सभी के साथ मिल कर आवाज उठाता हे अब हिटलर राजनितिक रूप ले चूका होता हे।  हिटलर की पहली सभा थी 1920 में  और विषय था हम ऐंटीनेशनलिस्म क्यों हे ?इस के लिये हिटलर  यहूदीयो को जिम्मेदार माना हिटलर  राइटविंग ग्रुप को प्रेरित करता हे जो उसको लीडर बनाते हे। और उसके लिए कर खरीदते हे जो उसकी एहमियत का सबूत था हिटलर अपनी पार्टी का नाम बदलता हे और उसमे नेशनल और सोशलिज्म जैसे शब्द डालता हे उसका मकसत अपने दायरे को बढ़ाना था उसने नाम दिया नेशनल सोसियलिस्ट जर्मन वर्कर पार्टी। पार्टी की सदस्य्ता बढ़ने लगती हे धीरे धीरे 2000 से 20000 हो   जाती हे। उसके बाद हिटलर के जीवन की राजनीती में कई उतर चढ़ाव आते हे। अपनी जोश से  बोलने की कला से हिटलर अपनी पार्टी  को बहुत आगे ले जाता हे। और सबसे बड़ा कट्टरवादी बनता हे जो दूसरे विश्वयुद्ध की पुकार थी। हिटलर की यहुदीओ को नफरत ही उसको इस पैगाम पे पोहचाती हे। इस नफरत ने ही पुरे जरमोनी को खूनखराबे में धकेला हे। 













Monday, April 1, 2019

Tirumala Tirupati Balaji (तिरुमला तिरुपति बालाजी )

दुनिया में लोग कई धर्मो को मानते हे लेकिन उन सभी धर्मो में हिन्दू धर्म सबसे प्राचीन धर्म माना जाता हे। भारत में यह हजारो सालो से कायम हे जहा एक से दूसरे छोड़ तक अनगिनत मंदिर दिखने में आते हे लेकिन दक्षिण भारत के पहाड़ो की  चोटी पर शान से खड़ा एक मंदिर उन हिन्दू धार्मिक स्थलों मे से एक हे जहा दुनिया   भर से सब से ज्यादा तीर्थयात्री आते हे।
आंध्रप्रदेश राज्य में मौजूद तिरुपति पहली नजर में मॉडल  इंडिया के किसी भी अर्बन सिटी की तरह चहल पहल से भरा दीखता हे लेकिन यह जाना जाता हे सदियों पुराने आध्यात्मिक स्वर्ग के द्वार के तोर पर। यहाँ 8000 sq km में फैले 50 करोड़ साल पुराने पहाड़ से गुजरकर सफर पोहचता हे टेम्पल टाउन तिरुमला। 
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Tirumala temple town


दुनिया भर में बसे एक अरब से  ज्यादा हिन्दू औ में से ज्यादातर के लिए यह टेम्पल टाउन मायने रखता हे. समुंद्रतल से करीब 2500 फ़ीट उचाई पर मौजूद तिरुमला धरती के उन हिन्दू तीर्थो में से एक हे जहा सबसे ज्यादा लोग आते हे। यहाँ रोजाना औसतन 60 से 70 हज़ार लोग आते हे खास मोको पर तो लोगो की भीड़ 1 लाख से भी ज्यादा हो जाती हे.
सबकी एक ही इच्छा होती हे की उस मंदिर में जाना जो समर्पित हे भगवान श्री वेंकटश्वर स्वामी को.तिरुमला मंदिर सृष्टि के सर्जनहार भगवान विष्णु को समर्पित हे। भगवान विष्णु श्री वेंकटेश्वर स्वामी के रूप में अवतरित हुए और सबके कल्याण के लिए  तिरुमला में ही बस गए।

तिरुमला तिरुपति बालाजी मदिर का इतिहास (History Of Tirumla Tirupati Balaji)

तिरुमला मंदिर द्रविनियम आर्किटेक्चर कि उस शैली  की एक शानदार मिसाइल हे जो सात वि सदी की हे। इस आर्किटेक्चर में खास होते हे विशाल पिरमिड जैसे स्ट्रक्चर जिन्हे कहते हे गोपुरम और पिलोर्ड़ हॉल जिन्हे कहते हे मंडपम।  गोपुरम और मंडपम में खास तरह की तरासी  हुई मुर्तिया दिखती हे जो अलग अलग  वंश की कहानिया कहती हे. 9 वि सदी में यह पल्लव वंश से लेकर 11  वि सदी में चोल वंश था 14 वि और 15 वि सदी में यह टेम्पल टाउन विजयनगर वंश के प्रभाव में था .18 वि से लेकर 19  वि सदी तक ब्रिटिश एम्पायर ने यह से टैक्स वसूला था आख़िरकार 1933 में एक एक्ट पास हुआ जिसमे मंदिर और उसे जुडी गतिविधियों की देखरेख के लिए एक ओटोनॉमस बॉडी बनाई गई जिसका नाम दिया गया तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (T.T.D) आज भी T.T.D ही श्रद्धालु को तिरुमला पोहचने के बाद से उन की इस तीर्थयात्रा की सारि  देखरेख करता हे।

तिरुमला मुख्य मदिर तक पोहचने का सफर (Way To Tirumala Main Temple) 

तिरुमला आने वाले तक़रीबन हर श्रद्धालु का एक ही मकसत होता हे की यह आकर श्री वेकेंटश्वर स्वामी के दर्शन करना यह  लोग अपनी पूरी श्रद्धा से मन्नत मांगते हे. लेकिन दर्शन का रास्ता उतना आसान नहीं हे सफर लम्बा हे जो सरु होता हे पहाड़ की तलहटी में तिरुपति से तलहटी से ऊपर मंदिर पोहचने के दो तरीके हे सेसाचलम की घुमावदार सड़क से करीब एक घंटे की ड्राइव से भी मंदिर पोहचा जा सकता हे लेकिन बहोत से लोग ज्यादा मुश्किल तरीका अपना कर जाते हे 16 वि सदी के राजा की तरह यानि पैदल जाते हे। पैदल रास्तो में से भी दो रस्ते हे ज्यादा चढ़ाई वाला मुश्किल रास्ता श्रद्धालु कम चढ़ाई वाला लम्बा रास्ता भी चुन सकता हे अदिकतर श्रद्धालु इसी रस्ते से जाते हे. रास्ते  में श्रद्धालु को अलग अलग तरीके से चढ़ाई करते हुए देखा जा सकता हे जैसे हर सीडी पे सिंदूर का टिका लगाते  हुए जाना कुछ श्रद्धालु तो हाथो और घुटनो के बल पर सिडिया चढ़ कर आते हे और कुछ ऐसे भी हे जो चढ़ाई का  पूरा आनंद लेते हे .
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tirupati jane ka rasta


अलिपिलीवाले रास्ते में गलिकोपुरम एक खास पड़ाव हे यह दर्शन के लिए रजिस्ट्रेशन होता हे. आज कम्पूटराइज़्ड टोकन सिस्टम के चलते यह प्रोसेस आसान हो गया हे और रास्ते में भी तमाम सहूलियतों में सुधार हुआ हे इस का श्रेय जाता हे तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (T.T.D. के अड्मिनिस्ट्रेस्शन को श्रद्धालु पैदल आये हो या गाड़ियों से सभी आखिरकार तिरुमला पहोचते हे. यानि वो टाउन जिसके सेंटर में हे श्री वेंकटश्वर स्वामी। यह आकर कुछ श्रद्धालु तो सीधे कल्याण कट्टा की तरफ बढ़ जाते हे यह एक खास रस्म को अंजाम दिया जाता हे जो पुरे तिरुमला टाउन में सबसे खास नजारो में से एक बन जाता हे. जहा  देखो वही  मुंडन किये हुए सर दिखाय देते हे कई श्रद्धालु दर्शन से पहले मुंडन करना जरुरी मानते हे यह मुंडन करने की रश्म भगवान् के पास जाने से पहले अपना अहम  को मिटा देने का प्रतिक मानी  जाती हे.
यहां दर्शन के लिए बाद में घंटो तक  लाइन में रहना पड़ता हे इसी वजह से बीते सालो माँ दर्शन की लाइनों में रेस्टिंग गेलेरी का इंतजाम किया गया हे।  साल दर साल बढ़ती भीड़ को देखते हुए TTD ओर्थोरिटी ने एकबार फिर इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर एक आसान तरीका निकाला हे अब श्रद्धालु दर्शन अपॉइमेंट पहले ही ऑनलाइन बुक कर सकते हे. कोई किसी भी रस्ते से आये आखिर में सभी एक ही द्वार पर पहोचते हे श्री वेंकेटेश्वर स्वामी के मंदिर के द्वार.

तिरुमला तिरुपति बालाजी मुख्य मंदिर (Inside Of Tirumala Tirupati Balaji)

मुख्य मंदिर 22 एकर में फैला हे इसकी लम्बाई हे 415 फ़ीट और चौड़ाई 263 फ़ीट श्रद्धालु महाद्वाराम से अंदर आते हे जो हे 50 फ़ीट उच्चा बाहरी गोपुरम अंदर जाते हुए हे आयना महल और ध्वजस्तंभ हे सिंगल पॉइंट एंट्री से श्रद्धालु की भारी भीड़ मुख्य द्वार से  दाखल होती हे। यह हर घंटे 4000 तीर्थयात्री गुजरते हे।  अंदर जाकर श्रद्धालु को कुछ पल  के लिए  श्री वेकेंटश्वर स्वामी के दर्शन होते हे। यहां पर ही हे भगवान  की 8 फ़ीट उची प्रतिमा। इस बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं हे की यहां यह प्रतिमा किसने बनाई या किसने स्थापित की लेकिन बहोत का मानना हे की ऐ यह स्वयं प्रगट हुए।
tirupatibalaji

मुख्य प्रतिमा के पास कई और प्रतिमा हे हर एक प्रतिमा की  अलग पहचान, तय मकसत,और अपनी एक  वजह हे।  चांदी की भोगहश्रीनिवास की प्रतिमा वो स्वरूप हे जिसे रोजाना की ज्यादातर रश्मो में पूजा जाता हे। यह कोलुवुश्रीनिवास की प्रतिमा हे जो मंदिर के विधिविधानो  में प्रतिक के तोर पर शामिल होती हे। उग्रश्रीनिवास की प्रतिमा भगवान के क्रोधित स्वरूप को दर्शाती हे। और यह श्री मलयप्पास्वामी की प्रतिमा की दोनों और देविया हे एक हे भूदेवी और दूसरी हे श्रीदेवी यही वो सभी  प्रतिमा हे जो रोज होने वाली पूजा के लिए गर्भगृह से बहार जाती हे. प्रतिमा चाहे गर्भगृह के  अंदर हो या बहार उन्हें कीमती नगीने से बने गहने पहनाये जाते हे और शानदार परंपरागत पोशाक भी पहनाया जाता हे।

प्रसादम(prsadam) 

मंदिर के सबसे पॉप्युलर ट्रेडिशन में से एक हे प्रसादम जिसे श्रद्धालु मुख्यमन्दिर से निकलने के बाद लेते हे. असलमे इंडियन मिठाइयों में इस ने सेलिब्रिटी स्टेटस हासिल कर लिया हे नाम हे तिरुपति लड्डु। यह लड्डू इतने पसंद किये जाते हे की हाल के सालो में इसे पेटंट कराया  गया हे। तिरुपति लड्डु G.I यानि जिओग्रापीकल इंडिकेशन स्टेटस दिया गया हे जिसका मतलब हे मंदिर की यह प्रिपरेशन और क्वॉलिटी यूनिक हे।

 वो क्या हे जो इस लड्डु को खास बनाता हे ? इसका जवाब सायद इन्हे बनाने वाले मॉडर्न टेक्नोलॉजी और सदियों पुराने मुँह में पानी लाने  वाले परंपरागत के मेल में छुपा हे. लड्डू की इस  मंदिर की फ़ूड स्टोरी में एक खास जगह हे। हर लड्डू हाथ से बनाया जाता हे चने के आटे,चीनी ,और घी से इसमें इलायची जैसे स्पाइसिस और काजू किसमिस जैसे ड्राईफूड डाले  जाते हे।यहां तिरुमला में रोजाना करीब 3 लाख लाडू त्यार होते हे। यह लड्डू भी T.T.D के टेस्टिंग लैब से टेस्ट होकर आते हे।

ब्रम्होत्सव (Bramhotsav)

ब्रम्होत्तसव 9  दिन का होता हे और उत्सव से पहले ही यहाँ तिरुमला टाउन रंगबेरंगी जग्महट और गीतसंगीत में गूंज उठता हे। इस उत्सव के दौरान  ये  दिनिया में सबसे ज्यादा हिन्दू तीर्थयात्री आते हे। पहाड़ी के बीचमे बसा तिरुमला टेम्पल टाउन में 1 लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु का जमघट लगा होता हे। ब्रम्होत्सव श्री वेकेंटश्वर स्वामी के तिरुमला में पौराणिक आगमन की ख़ुशी में मनाया जाता हे।

उत्सव के दौरान यहाँ जबरदस्त धूमधाम रहती हे। इस उत्सव के दौरान रोज सुबह ओर शाम को मुख्य मंदिर से भगवान श्री मलयप्पास्वामी की सवारी निकलती हे.उत्सव के सरु होते ही माहौल जोश से भर जाता हे।  इस उत्सव के दौरान करीब 35 टन से भी ज्यादा फूलो का उपयोग होता हे यह फूलो दूसरे राज्यों और दूसरे देशो से भी आते हे। इस उत्सव में गरुड़ के आकर का वो सुनहरा रथ के दर्शन होते हे जिस रथ में सवार होते हे श्री मलयप्पास्वामी। भगवान को तमाम तरह के विधिविधान से पूजा जाता हे जिन्हे लाखो की भीड़ निहारती हे।

तिरुमला मंदिर में एक आम दिन भीड़ की तादाब 60 से 80  हजार तक पहोच जाती हे सभी का एक ह मकसत होता हे मंदिर में बिराजे भगवान श्री वेकेंटश्वर  स्वामी के दर्शन।  श्रद्धालु खास तरह के एहसास पाने की उम्मीद में तिरुमला आते हे। दिव्य दर्शन से लेकर मशहूर तिरुपति लड्डू चखने तक का सफर वो पूरी भक्ति के साथ करते हे पहाड़ पर बसे  इस टेम्पल टाउन पर मिलन होता हे भौतिक और पारलौकिक का और लगातार बहती हे धारा तिरुमला के भगवान श्री वेकेंटश्वर स्वामी की भक्ति की।